Very Short Stories in Hindi | भले आदमी की खोज
कहते हैं की आज के कलयुगी दौर में भलाई का ज़माना नहीं रहा! लेकिन आज भी कई लोग हैं जो भले आदमी को देखते ही उसकी पहचान कर लेते हैं और कई बार दूसरों की भलाई करते करते ही हम ज़िन्दगी में कुछ अलग कर जाते हैं| कुछ इसी बात पर आधारित है आज की हमारी यह कहानी “Very Short Stories in Hindi | भले आदमी की खोज”
Very Short Stories in Hindi | भले आदमी की खोज
एक बार एक गाँव में गाँव के सबसे धनि व्यक्ति ने एक बहुत बड़ा मंदिर बनवाया| मंदिर जब बन के तैयार हुआ तो बहुत से दर्शनार्थी मंदिर में दर्शन लाभ के लिए पहुँचने लगे| मंदिर की भव्यता को देख लोग मंदिर का गुणगान करते नहीं थकते थे| समय के साथ मंदिर की ख्याती जाने माने मंदिरों में होने लगी और दूर दूर से लोग दर्शन लाभ को मंदिर में पहुँचने लगे| श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या को देख उस व्यक्ति ने मंदिर में ही श्रद्धालुओं के लिए भोजन और ठहरने की व्यवस्था का प्रबंध किया| लेकिन जल्द ही उन्हें एक ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता हुई जो मंदिर में इन सभी व्यवस्थाओं का देखरेख करे और मंदिर की व्यवस्था बनाए रखे|
अगले ही दिन उसने मंदिर के बहार एक व्यवस्थापक के लिए नोटिस लगा दिया| नोटिस को देख कई लोग उस धनि व्यक्ति के पास आने लगे| लोगों को पता था की यदि मंदिर में व्यवस्स्थापक का कम मिल जाएगा तो वेतन भी बहुत अच्छा मिलेगा| लेकिन वह धनि व्यक्ति सभी से मिलने के बाद उन्हें लोटा देता और सभी से यही कहता की, “मुझे इस कार्य के लिए एक भला व्यक्ति चाहिए, जो मंदिर की सही से देखरेख कर सके|”
बहुत से लोग लोटाए जाने पर उस धनि पुरुष को मन ही मन गलियां देते| कुछ लोग उसे मुर्ख और पागल भी कह देते थे| लेकिन वह किसी की बात पर ध्यान नहीं देता और मंदिर के व्यवस्थापक के लिए एक धनि व्यक्ति की खोज में लगा रहता| वह व्यक्ति रोज सुबह अपने घर की छत पर बैठकर मंदिर में आने वाले दर्शनार्थियों को देखा करता|
Very Short Stories in Hindi | भले आदमी की खोज
एक दिन एक बहुत ही गरीब व्यक्ति मंदिर में भगवान के दर्शन को आया| धनि व्यक्ति अपने घर की छत पर बता उसे देख रहा था| उसने फाटे हुए और मैले कपडे पहने थे| देखने से बहुत पढ़ा लिखा भी नहीं लग रहा था| जब वह भगवान् का दर्शन करके जाने लगा तो उस धनि व्यक्ति ने उसे अपने पास बुलाया और कहा, “क्या आप इस मंदिर की व्यवस्था सँभालने का काम करेंगे|”
धनि व्यक्ति की बात सुनकर वह काफी आश्चर्य में पद गया और हाथ जोड़ते हुए बोला, “सेठ जी, में तो बहुत गरीब आदमी हूँ और पढ़ा लिखा भी नहीं हूँ| इतने बड़े मंदिर का प्रबंधन में कैसे सम्हाल सकता हूँ|”
धनि व्यक्ति ने मुस्कुराते हुए कहा, “मुझे मंदिर की व्यवस्था के लिए कोई विद्वान पुरुष नहीं चाहिऐ…में तो किसी भले व्यक्ति को इस मंदिर के प्रबंधन का कम सोंपना चाहता हूँ|
“लेकिन इतने सब श्रद्धालुओं में आपने मुझे ही भला व्यक्ति क्यों माना” उसने आश्चर्य से पूछा|
धनि व्यक्ति बोला, “में जनता हूँ की आप एक भले व्यक्ति हैं| मंदिर के रस्ते में मेने कई दिनों से इट का एक टुकड़ा गडा था| जिसका एक कोना ऊपर से निकल आया था| में कई दिनों से देख रहा था की उस इट के टुकड़े से कई लोगों को ठोकर लगती थी और कई लोग उस इट के टुकड़े से ठोकर खाकर गिर भी जाते थे, लेकिन किसी ने भी उस इट के टुकड़े को वहां से हटाने कि नहीं सोची| आपको उस इट के टुकड़े से ठोकर नहीं लगी लेकिन फिर भी आपने उसे देखकर वहां से हटाने की सोची| में देख रहा था की आप मजदुर से फावड़ा लेकर गए और उस टुकड़े को खोदकर वहां की भूमि समतल कर दी|
धनि व्यक्ति की बात सुनकर उस व्यक्ति ने कहा, “मैंने कोई महँ कार्य नहीं किया है, दूसरों के बारे में सोचना और रास्ते में आने वाली दुविधाओं को दूर करना तो हर मनुष्य का कर्त्तव्य होता है| मैंने तो बस वही किया जो मेरा कर्त्तव्य था|
धनि व्यक्ति ने मुस्कुराते हुए कहा, “अपने कर्तव्यों को जानने और उनका पालन करने वाले लोग ही भले लोग होते हैं|” इतना कहकर धनि व्यक्ति ने मंदिर प्रबंधन की जिम्मेदारी उस व्यक्ति को सोंप दी|
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